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मि॒त्रो दे॒वेष्वा॒युषु॒ जना॑य वृ॒क्तब॑र्हिषे। इष॑ इ॒ष्टव्र॑ता अकः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mitro deveṣv āyuṣu janāya vṛktabarhiṣe | iṣa iṣṭavratā akaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मि॒त्रः। दे॒वेषु॑। आ॒युषु॑। जना॑य। वृ॒क्तऽब॑र्हिषे। इषः॑। इ॒ष्टऽव्र॑ताः। अ॒क॒रित्य॑कः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:59» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:6» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मित्रत्व से ईश्वरोपासना विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (मित्रः) ईश्वर (वृक्तबर्हिषे) छोड़ा है जल जिसने उस (जनाय) मनुष्य आदि के लिये (देवेषु) उत्तम (आयुषु) जीवनों में (इष्टव्रताः) चाहे हुये काम जिनसे होते उनकी (इषः) इच्छाओं को (अकः) पूर्ण करता है, उसकी सब लोग सेवा करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो परमात्मा अन्याय से रहित भक्त मनुष्यों को सिद्ध इच्छावाले करता है, वही सब लोगों को ध्यान करने योग्य है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मित्रत्वेनेश्वरोपासनविषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यो मित्र ईश्वरो वृक्तबर्हिषे जनाय देवेष्वायुष्विष्टव्रता इषोऽकस्तं सर्वे भजध्वम् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रः) सखा (देवेषु) दिव्येषु (आयुषु) जीवनेषु (जनाय) मनुष्याद्याय (वृक्तबर्हिषे) वृक्तं बर्हिरुदकं येन तस्मै (इषः) इच्छाः (इष्टव्रताः) इष्टकर्माणः (अकः) करोति ॥९॥
भावार्थभाषाः - यः परमात्माऽन्यायवर्जितान् भक्तान्मनुष्यान्त्सिद्धेच्छान् करोति स एव सर्वैर्ध्यातव्य इति ॥९॥ अत्र मित्रादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनषष्टितमं सूक्तं षष्ठो वर्ग्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो परमात्मा अन्यायरहित भक्त माणसांची इच्छा पूर्ती होईल अशी व्यवस्था करतो, त्याचेच सर्वांनी ध्यान करावे. ॥ ९ ॥